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स्नेहिल स्पर्श

हैं अनेकों यहाँ
तुमसा नहीं है
इस धरा पर !
हैं करोड़ों सूर्य !
पर ,
तुम सा नहीं 
आलोक उनमें ।

एक दिनकर है
तो क्या ? वह
हर ही लेता
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