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शिव मेरे आराध्य !

मैं ' शिव ' की  शिवता में डूबा !
अपने प्रिय की प्रियता में डूबा !

अब ध्यान सिर्फ़ प्रिय का रहता !
वह छवि अनुपम!औ'ज्योतिर्मान !
वह  रहता  हर क्षण  विद्यमान !

वह अंतहीन  अविनाशी है  !
सबके उर–घट का वासी है !
वह   ही 
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