वंदन है अभिनंदन है !
रोम-रोम में स्पंदन है !
तेरे अतुलित पराक्रमों से
अरिदल में क्रंदन है ...
हे शत्रुजीत ! हे राष्ट्राधक !
हे मातृभूमि के रक्षक !
सर्व नाश कर देते –
तत्क्षण शत्रु पक्ष का !
नभ हो ,जल हो , थल हो
या हों हिमगिरि के –
उत्तुंग – शिखर !
अदम्य साहस तेरे अंदर !
कर जाते दुर्गम पथ पार
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