मैं किसान हूँ
मेरा जीवन श्रम है।
आप को कोई भ्रम है ?
मैं मंदिर-वन्दिर
मस्जिद-वस्जिद
नहीं जानता !
मैं जानता हूँ
धरती का अस्तित्व !
मैं खेत जाता हूँ
वही मेरा भगवान है !
मैं ध्वंस या विध्वंस नहीं
साक्षात निर्माण हूँ ।
हाँ , मैं किसान हूँ ।
मैं ग्रह - नक्षत्रों से
उषा काल से , परिंदों से ,
झरनों से , नदियों की लहरों से
कर्म की प्रेरणा ग्रहण करता हूँ ।
जब शेष दुनिया !
सोती है गहरी नींद ,
तब भी मैं जागता हूँ
मिट्टी में हाथ-पैर सानता हूँ
क्योंकि मैं जानता हूँ
दो गज जमीन और
दो रोटी की कीमत !
आप कहेंगे -
क्या ही फालतू बात है
पर मुझे भली-भांति-
यह ज्ञात है कि –
जो कुछ भी सुंदर है
वह सब कुछ श्रम-साध्य है!
पूरी दुनिया को
मेरी जरूत है ।
अतः दिन - रात !
श्रम में डूबना मेरा काम है ।
मैं किसान हूँ
हल की हराई में
जुते खेत की –
गहराई मापता हूँ ।
पर आज तक कोई भी
मेरे मन की पीड़ा की
गहराई नहीं माप सका !
मैं किसान हूँ
कभी-कभी
दार्शनिक भी
हो जाता हूँ !
मैं कहता हूँ –
केंद्रित कर्म और
केन्द्रित श्रम में
बड़ी शक्ति होती है !
इनसे स्वयं की क्षमताएं
विकसित होती हैं ,
सफलताएं सामने आ जाती हैं ।
मैं किसान हूँ !
माना कि मेरा पेट
नहीं भरता , पर
दुनिया का पेट भरता हूँ
श्रम में निरन्तर लीन हूँ&nb
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