
१)
अंतर्मन से उठती पीड़ा !
कुछ नया रचूँ क्या ?
छोड़ व्यथाएँ ! जन-मन की ,
प्रेम के गीत लिखूँ क्या ?
२)
बहुत हो चुकी आँख-मिचौनी !
बहुत हो चुकी होड़ा-होड़ी !
सबकुछ छोड़-छाड़ कर
तुम सब के मुखौटों को–
फोड़-फाड़कर
आज अभी विद्रोह लिखूँ क्या ?
३)
अंदर की ज्वाला धधक रही
अब छोड़ ! शान्ति की बात –
क्रान्ति के गीत लिखूँ क्या ?
कुछ नया रचूँ क्या ?
४)
नहीं नहाऊँगा अब –
मैं , सुशीतल जल से
धरूँ हाथ में दण्ड !
लहू को पिघलाऊँ क्या ?
कुछ नया रचूँ क्या ?
५)
तुम सब की
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