क्या लिखूँ दिन की कविता !
उसने ही मुझको लिख डाला !
उषःकालकी –
प्रथम रश्मि पर
चढ़ कर आई थी कविता !
कोमल भाव भरा मन में
जीवन में भर दी तरुणाई !
आलस छूटा ! हुआ सवेरा
सोते से वो जगा गई !
आँख खुली तो देखा मैंने –
निकल पड़े हैं नीड़ों से पंछी
पंख – पसारे दूर... गगन में
चह - चह करते उड़ते जाते
दूर दिशा में दाना चुगने ..
क्यारी में फूलो
Read More! Earn More! Learn More!