'गरीबी''s image

देख अरे! इंसान

बुझे हुए चूल्हे की आग!

जीवन की ठंढ़ी पड़ती आस!

भूख-प्यास से जीवन 

इनका बुझा हुआ है

ज्यों बुझीआग की ठंढ़ी राख!

न जाने कब के ये भूखे!

कटे-फटे कपड़े में रूखे!

दिखते हैं कितने ये सूखे!

सूख गई हैं जिनकी आँतें!

बुझी हुई हैं इनकी आंखें!


दाने पाने की 

आस 'शेष' है

इनके जीवन का,

यह महा क्लेश है…


विपन्नता-लाचारी –

इन

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