दर्द को गीत बनाये बैठा हूँ,
तेरे दिए जख़्मों को लिए बैठा हूँ ।
जो लम्हे गुजारे थे एक साथ हम,
उन लम्हों को सीने से लगाये बैठा हूँ ।
ना ही कोई शिकवा,ना गिला है मुझे !
खुद ही अपने लबों को सीये बैठा हूँ !
तू आये या चली जाए , अब
कोई फर्क नहीं पड़ता
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