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आत्महंता मत बनो !

संधि अनुचित है कभी तो
संधि को श्रद्धांजलि दो
आत्महंता मत बनो 
ग़र सामने कोई भी हो ।

तुम सदा ब्रह्मांश हो
गीता तुम्हारा स्वर बने
सद्कर्म करते ही चलो
विश्व को गीताञ्जलि दो !

बेखौफ़ हो जीवन जियो
मरुभूमि या रणक्षेत्र ही हो
सत्य के पथ बढ़ चलो,औ'–
झूठ को तिलाञ्जलि दो !

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