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सावन के महीने में

वो गांँव आई थी सावन के महीने में,

जला गई इश्क की लौ मेरे सीने में।


झूलते देखा जबसे बाग के झूले में,

बिना उसके मजा नहीं रहा जीने में।


कुछ ही शाम साथ बिता था उसके,

अब किससे बात करू बाबू

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