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मेरी बज़म में भीड़ का क्या काम ए दोस्त
मेरा ज़माने से क्या राब्ता 
इक तू है तो महफिल जमा लेंगे हम 
हम तो आदिल दिलों के बस मुरीद हैं।
                                      
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