
कई दिनों से मन था
आज मन की सुन ली
अकेली जाने की बात
हर किसी से छुपा कर रख ली
सोचा अपने मां-बाप के पास
तो रहती हूं मैं कब से
आज मिल आती हूं उनसे
जिन्हें बच्चों का प्यार मिला नहीं बरसों से
बाहर से पहले मैं देखती रही
गेट में बात कर, आगे बढ़ी
आखिरकार उस कमरे की ओर जाने लगी
थोड़ी सी घबराहट लिए चलने लगी
दरवाजे पर पहला कदम रख दिया
तभी मुझे किसी ने कस के गले से लगा लिया
जैसे किसी अपने ने मुझे पहचान लिया
कुछ पल तक मैंने भी नहीं हटने दिया
उनके कंधे पर हाथ मैंने भी रख दिया
आंसुओं से उसने मेरा दुपट्टा भीगा दिया
सीने से लगाकर मुझे मिनटों रख लिया
ना समझी, ना कुछ बोली,
मैं भी लिपट कर उनसे खड़ी रही
ऐसे चेहरे ने गले लगाया मुझे
जिससे मैं कभी मिली नहीं
फिर पता चला दो साल से वह
रोज बेटी का इंतजार कर रही
उन्हें हमेशा यही सुनने को मिलता
"छोड़ो उसे वो तेरी बेटी नहीं"
मिलने की ऐसी तड़प कहीं मैंने देखी नहीं
मां को यहां छोड़ कैसे कोई घर पर रह रही
आंसुओं से भीगे चेहरे पर मैं देखने लगी
बिना पूछे खुद वह मुझसे कहने लगी
एक ही संतान मिन्नतो से आई थी
बेटी के रूप में मैंने नई जिंदगी पाई थ