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'सच' और 'झूठ'

दुनिया बहुत ख़ूबसूरत है
यह बात बिल्कुल 'सच' है
और दुनिया वाले सच्चे हैं
यह बात एकदम 'झूठ'
:
'सच' और 'झूठ'
:
इन दो शब्दों के
मात्रा भार को देखें
तो झूठ का पलड़ा भारी है
इतना भारी कि अब झूठ ही
लोगों को सच लगने लगा है
वैसे भी सदियों से
हमारी मानसिकता यही रही है
कि जिसका पलड़ा भारी हो
हम अक्सर उसी की तरफ हो जाते हैं
परिस्थितियाँ इस क़दर बदल दी गईं
कि लोग सच देखना
या सुनना ही नहीं चाहते
झूठ की चादर से
लोगों को ढक दिया गया है
चादर के भीतर से बाहर देखने पर
सच धुँधला नज़र आता है
पर हम..
कभी चादर हटाने की
चेष्टा ही नहीं करते
बाहर देखना हमने छोड़ ही दिया
चादर के भीतर की दुनिया में ही
हम आनंदित हैं..
हमें लगता है
दुनिया उस चादर के
भीतर ही समाई है
जो कुछ दिख रहा है
या जो कुछ दिखाया जा रहा है
वही सच है..!
राजनीति की बात करें
तो राहुल का जनैऊ पहनना
या मोदी का फ़क़ीर होना
जन मन की बात करें
तो लोकपाल पर अनशन करना
या अरविंद का आम होना
रिश्तों की बात करें
तो अखिलेश का भतीजा होना
या मायावती का बुआ होना
संसद की बात करें
तो विपक्ष का आरोप लगाना
या विधेयक पर साथ आना
पत्रकारिता
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