' सिस्टम ''s image

बांध दिया ना आज

फिर इस 'सिस्टम' के कुचक्र में तूने मुझे

फिर रोक दिया ना मेरे बढ़ते कदमों को

हौसलों को, इरादों को

जकड़ लिया ना मेरे पैरों को , बेबस्ता


अरी तू है कौन?

और वो भी इतनी मज़बूत

क्या, क्या नाम क्या दूं तुझे?


'जी हुजूरी' या दर्द की मारी बेबस 'चुप्पी '

भ्रष्टाचार तो कह नहीं सकती तुझे,

वो तो तेरे लिए बहुत छोटी-सी उपाधि होगी

हां, चरमराती लाचार 'रीड की हड्डी'

यही सही रहेगा!

तुझ जैसी भयंकर डायन के लिए,

जो जलाती है लोगों की आत्मा,

जो भूनकर खा जाती है रसीले गठीले शरीर को

जो पिघला देती है अपनी पापी तपिश से, इंसान के जज़्बे को


उफ़, कितनी घिनौनी है तू!


लेकिन तेरे इस घिनौनेपन से मोहब्बत भी है कुछ लोगों को

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