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मंज़िल ना पा सका

मंज़िल ना पा सका राह में ठहरा बहुत था
वो दिल मेरा जो उम्मीदों से भरा बहुत था

यूॅं तो ना थे ये मेरे ख़्वाब सावन में
पतझड़ से पहले ये जगह हरा बहुत था

मैं तो मांझा था मेरे ख़्वाबों के पतंग का
कटने से पहले ये पतंग लहरा बहुत था

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