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ख़त में गुलाब

हर दिन हर पल का इतना हिसाब कौन रखे
बरसों से थकी आंखों में नया ख़्वाब कौन रखे

ज़िक्र कर दूं तेरा तो कुछ ग़म पुराने उभर जाएं
लेकिन अब लबों पर दिल के अज़ाब कौन रखे

तुम ही नहीं हो तो मुझे रोना सिखायेगा कौन
सूख गईं आंखें, इनमें फिर से सैलाब कौन रखे

वो अदाएं आपकी और वो ख़ूबसूरती वहीं
बग़ैर मेरे इस पर दिल का खिताब कौन रखे

यादों की जूगनुओं से ही रोशन है मेरा सफ़र
फिर ख़्वाबों से जलता हुआ आफ़्ताब कौन रखे

आपकी नज़दीकियों में थे लिखे कुछ शायरी
वो नज़दीकिया
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