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छोटी-सी बात


छोटी-सी बात का क्यों तुम फसाद बनाते हो

अपने गिरेबां में झाँका है कभी, 

जो औरों पर उंगलियां उठाते हो.


सुलझ सकता है जो दो मीठे बोल बोलकर

उस मसले में क्यों गाली-गलौच करते हो, 

क्यों वहां भी तू तड़ाक पर आते हो.


समझाया था सबने कि दिल ना लगाना 

पर ज़रा भी माने नहीं तुम, 

अब क्यों अपनी तन्हाई का उस पर इल्जाम लगाते हो. 

 

मेरा अपना तजुर्बा कहता है 

इस सौदे में नुकसान ही नुकसान है, 

तुम क्यों बेकार अपनी किस्मत आजमाते हो. 


पत्थर हो चुका है ये 

अब रहने दो तुम, 

क्या मोम समझकर इसे पिघलाते हो. 


वो किसी और ही पे मरती है 

क्या ये तुम रोज़ खुद को, 

आईने में देख इतराते हो. 


कितनी बार जी दुखाया मेरा

ज़माने भर में रुसवा मुझे करके, 

अब कौन सा हक़ मुझ पर जताते हो. 


जब कर सकते थे तब कुछ किया नहीं 

खोये रहे अपनी ही धुन में,&nbs

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