अब भी लिखती हूँ अश'आर मगर
पहले जैसा असर नहीं होता
तुझसे मिलती थी तो जन्नत लगता था
तेरी गैर-मौजूदगी में ये शहर, वो शहर नहीं होता
लगी रहती हूँ किसी-न-किसी उधेड़-बुन में
तुझे सोचे बगैर मेरा दिन पूरा नहीं होता
यू तो नियामतें हज़
Read More! Earn More! Learn More!