![माटी का पुतला's image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/post_pics/%40prince-tulsian/None/1666091740590_18-10-2022_16-45-42-PM.png)
छू के मिट्टी को यें ऐतबार हुआ
एक दिन इसमें ही समा जाना है ...
वक्त थमता है किसके लिए
हर किसी का वक्त आना है ..
चिराग़ की रोशनी भी काफ़ी है
ग़र आँखों में कर गुजरने की चमक हो ...
वरना तो रोशनी सारे जहां की भी कम है
ग़र सीने में ना आग हो ना दहक हो ..
इंसान कब इंसान बना मालूम नहीं
पर हैवानियत बख़ूबी अपनायी है ..
भेजा तो था तूने मासूम सी सीरत
रब्बा यें कैसे दुनिया बन आयी है ..
हर कोई खोजता है ख़ुदा को मंदिर मस्जिद
ना खोजे कभी खुद को कैसी है यह ज़िद्द ..
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