
बस निशा रात सो जाने को
हर रात के बाद सवेरा है ।
चेहरे रंगो से लीपें पूते
हर रंग बड़ा सुनहरा है ।
धूल जाएगा यह रंग छण भर का
जो तन पर छट कर फैला है ।
रंग दे हर तन हर मन को
जैसे इंद्रधनुष का घेरा है ।
छूप नहीं सकता अंधेरे में
सूरज को साँझ ने घेरा है ।
बस निशा रात सो जाने को
हर रात के बाद सवेरा है ।
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