खाई कैसी यह समाज की,
अहमियत नहीं यहाँ इंसान की.
यहां आज भी जाती पूजी जाती है,
और कर्म निंदा पाती है.
मूर्ति फसलों की गढ़ते वो अपनी अविरल श्रम से,
उनके रक्त स्वे
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खाई कैसी यह समाज की,
अहमियत नहीं यहाँ इंसान की.
यहां आज भी जाती पूजी जाती है,
और कर्म निंदा पाती है.
मूर्ति फसलों की गढ़ते वो अपनी अविरल श्रम से,
उनके रक्त स्वे