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विधायक साहब का रुतबा (व्यंग कविता)

विधायक जी का रुतबा मत पूछो,

सूखे नल से भी पानी बह निकले जब वो झांके।

गाँव की गली में पग धरें तो,

धूल खुद चटाई बिछा के।


सरपंच, पटवारी सब उनके ‘हां’ में ‘हां’ मिलाते,

थानेदार तो महीने में तीन बार पैर दबाते।

स्कूल के बच्चे उनसे

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