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प्रवासी हूं मै


प्रवासी हूं मैं


अपने देश को दिल में लिए,

इस धरा की वासी हूं मैं।

प्रवासी हूं मैं!

मातृभाषा को लिए अपने दिल और जबान में,

संस्कृति, शिष्टाचार, परंपरा और खानपान में,

पूर्णत: देसी हूं मैं, अपने व्यवहार में, प्रवासी हूं मैं!

अपने देश को दिल में लिए इस धरा की वासी हूं मैं।


वो घर वो दरो दीवारें, वो गलियां वो शहर, जहां बिताए थे मैंने, अपने बचपन और युवावस्था के सारे पहर,

मां, पिता, भाई, बहन, दोस्त और तमाम रिश्ते नाते,

आसान नहीं है उन्हें पीछे छोड़ना,

कैसे कोई उन्हें भुला दे!

जो होते हैं मानव जीवन की सबसे अनमोल संचित खाते।

पूंजी वो सारी जमा किए अपने दिल के लॉकर में,

चली आ

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