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नितांत निजी पल...

कुछ दुःख नितांत निजी होते हैं, उनका कोई साझेदार नहीं होता!
अतीत से फासला कितना भी बना लें कोई..!
लेकिन अतीत की कड़वी यादें जब तब दिल को दुखाने के लिए कोई ना कोई रास्ता खोज कर आ ही जाती हैं सामने।
मन बिफर उठता है और दिल के भीतर की टीस अंतस को भी भेद डालती है। मिलियन्स आबादी वाली इस दुनिया में इंसान के पास एक व्यक्ति नहीं होता जिससे वो दिल की हर बात कह सके ,
जिसके काँधे पर सर रखकर रो सके!
 अजीब है लेकिन एक कड़वा सच भी है यह कि हर वक़्त लोगों और भीड़ से घिरा रहने वाला इंसान भी अक्सर बिल्कुल अकेला होता है । स्त्रियों के हिस्से में दुख और अकेलेपन को तो ईश्वर ने भी ये सोचकर ज्यादा लिख दिया है कि स्त्री है सह लेगी !!
 सहना स्त्री की प्रकृति है क्योंकि स्त्री पर्यायवाची है पृथ्वी की, जो हर दुख , हर पीड़ा हर तिरस्कार को सहती रहती है
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