
थोड़ा थोड़ा और घट गया हूं मैं
तेरी जानिब जाऊं न जाऊं बंट गया हूं मैं
सोचता बहुत हूं आज कल दिल की बातें
सोचने में ही बस सिमट गया हूं मैं
नए ताश के पत्तों से जाना मैने
इश्क की बाज़ी में पलट गया हूं मैं
तेरा ज़िक्र न अब दर्द रहा न मरहम
फिर तेर
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