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चुप्पियाँ

सबकी मौत का एक दिन मुक़र्रर है

मौत सबको ही आनी है,

आएगी ही

आज उनकी, जो बोल रहे हैं

कल उनकी, जो चुप खड़े तमाशा देख रहे हैं।


और जब मरने वाला कोई नहीं

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