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ग़र यह तय है मेरी हर बात तुम ग़लत समझो

तब तो बेहतर की तुम कुछ भी मत समझो


मुस्कुरा कर आज कल क्यूँ देखते हो हमें

इस रहम-ओ-करम की नहीं हमें आदत समझो


अब इसलिए भी मिलने हम आते नहीं तुम्हें

तुम्हारी यादों से नहीं मिलती है फ़ुरसत समझो


तरसते हों हर दाने को खुद बच्चे जिसके

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