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बगिया बनी गलियां

कई रंगों से चित्र बनता, प्रकृति के मनोरम दृश्य का ,

विविधता से सजीव होता,मानचित्र इस धरती का।

इतिहास की दुहाई देकर ,

नए नामों से पुकारे जा रहे,

पुराने गली चौबारे ।

फुलवारी से नजर आते,

यदि इनमें निवास करते,

सभी धर्म के जन,

मिश्रित हो सारे।

सभी धर्मों के सार जल से सिंचित,

उन्नत पौधे होते विकसित।

जब मूल ही हो नैतिक,

भविष्य अवश्य हो जाता प्रदीप्त ।


श्रद्धा पूर्ण सुबह होती, अजान से पौ फटती,

भजनों की धुन, सूरज की नींद भगाती,

गुरबाणी उसकी आभा को चमकाती,

कैरोल नई सुबह का नया संदेशा देती।

प्रातः की इस सुंदर बेला में,

सौहार्द के वातावरण में,फूटती नन्ही कोपल

लहलहाती यह बगिया ,करने को लोकमंगल।


भांति भांति की रसोई ,नाना प्रकार के व्यंजन,

आदान-प्रदान कर खाते,मुस्कुराता हर घरआंगन।

कितनी माओं का दुलार लिए,

विभिन्न पाक शैली से पोषित,

आत्म शक्ति से परिपूर्ण, खिलती नन्ही कलियां।

सतरंगी नजर आती, बगिया बनी गलियां।


नैसर्गिक संगीत उभरता,

कण-कण को प्रफुल्लित करता।

ठुमरी के साथ ठुमकती सूफी,

ओपेरा का साथ देता टप्पा।

प्रेम धुन से तरंगित, पुष्पित होती कलियां

खुले हृदय से सबको स्वीकारतीं,बगिय

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