
है मन बहता तो बहने दो
अच्छा न बुरा कुछ कहने दो...
लिख डालो उसे कलम से तुम,
खनके जिसपर अद्भुत सी धुन,
समरसता की पद चाप को भी,
कट जायें जिसपे मूल्य सभी.
ऐसे कुछ क्षणिक अनल को तुम,
वसुधा की कविता कहने दो।।
है मन बहता तो बहने दो,
अच्छा न बुरा कुछ कहने दो....
जो सत् की राह चले हरपल
कुछ विकट कहां आता उसपर,
शब्दों से उसकी धार बनें,
लिख कलम वही तलवार बनें .
सत्,द्वापर,त्रेता, बीत गए,
तो कलयुग कहां कलंदर है..
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