
बेशक मैं महल की राजकुमारी
और महल की महारानी भी हूँ
पर प्रियवर मैं संग आपके
पत्नी धर्म निभाने आयी हूँ।
भूल गये क्या वो वचन सात
जो मंडप में दोनों स्वीकारे थे
आज वो दिन आया रघुवर
जो मुझको स्वयं निभाने है।
सुनो सिया! तुम तनिक सोच लो
सहज नही वन का जीवन
मान लो मेरी बात प्रिये तुम
बनो ना बालक सी नादान।
ना मैं कोई हठ कर रही
ना है ये बालक की नादानी
रघुनंदन मुझको संग ले चलो
बस इतनी है अरज हमारी।
बात को तुम ना समझ रही
ना है तुमको दुख का भान
जिन पावों में फूल चुभें है
काँटों से ना जाने क्या होगा
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