'वो क्षण तुम्हारे मेरे पास छूट गए थे'
विगत बांधा
क्षितिज पर भविष्य के
कि
शायद
मिलने का आभास ही
कभी हो
कभी तो,
धीरे बहुत धीरे
बढ़ता गया आकार
अंधकार
न मिलने का,
कुछ सुमन शेष
सुबह की आशा में विशेष
संजोए
किन्तु.....
किन्तु ही रहा,
आहिस्त
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