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'वह लोग हाथों में इश्तहार उठाए'


"वह लोग हाथों में...."


वह लोग हाथों में इश्तहार उठाए

मुंडेरों पर चढ़ने लगे हैं


अब

कुछ भी पर्दे में नही रह पाएगा

खिड़कियों से कूदने लगेंगे नारे

शून्य में


जो

मनुष्य के विरुद्ध

युद्ध का संचालन कर रहे हैं

छिपकर

वायदे के तम्बूओं में बसे माध्यम से।


आज रोटी की लड़ाई

तब्दील हो गई है

अस्तित्व की जंग में


और वह समझने लगे हैं

कि उनके ही जलस्रोत का पानी

बेचा जा रहा है

एक अदद उम्र के बदले।


वह जो बायाँ हाथ पीठ पर रख

झुके रहे दरबार में

पीढ़ी दर पीढ़ी


बढ़ाने लगे हैं क़दम

उन सड़कों पर

जो गांवों को नही छूतीं

पर 

जिनसे ही जाते हैं आंकड़ें

फ़ाइलों की जिल्द में

वहाँ तक,


फ़िर

बांट दिए जाते हैं बदस्तूर

अख़बारों

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