'मगर ये ज़िन्दगी कमबख्त पुर्जा है मशीनों का'
तुम्हारे प्यार की ख़ातिर खिलौना बन तो जाऊं मैं
मगर ये ज़िन्दगी कमबख्त पुर्जा है मशीनों का।
जिन्हें दो वक्त फ़ाकों ने दौड़ाया है शहर भर में
उन्हें फ़ुर्सत कहाँ दीदार हो अब महज़बीनों का।
लड़कपन नौजवानी फिर जहाँ पीरी गुज़ारी है
वहाँ ख़ारिज तसव्वुर है मोहब्बत का,
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