
'तुमसे ही कह रहा हूँ दोस्त'
तुमसे ही कह रहा हूँ दोस्त
स्वतंत्रता-पर्व पर
देश
सड़कों पर उत्सव मना रहा है
और एक मानसिक ज़मीन पर
सपने उगा रहा है,
'यह सच करने हैं सबको जगा रहा है'
दिशा-दिशा में भीड़
ढोल बजाती है
लाल बुर्जियों तक आ
ठहर जाती है,
फिर एक धुन
अस्पतालों में
दवा की कमी से मरने वालों तक आती है,
प्रसारित होते हैं
आकाशवाणी दूरदर्शन से
चैनलों के स्पंदन से
राष्ट्रीय गौरव-गीत
जिन्हें
मेरे घर आयी
मुरझाई बाई
अपने बच्चे को सुनाती है,
दूरसंचार पर
देश गरिमा-दिखाती है,
चुप न होने पर
एक टुकड़ा बासी रोटी
उसके
मुहँ से लगाती है,
रात का बचा टुकड़ा
देश के भविष्य के लिए कठोर है
इसे बड़ा बेटा निग़ल जाएगा
शहर के चौराहे से
जब झंडा बेचकर आएगा।
तुमसे ही कह रहा हूँ दोस्त
स्वतंत्रता पर्व पर
देश छुट्टी मना रहा है
नहर पार का उपनगर
राष्ट्रीय गौरव बढ़ा रहा है,
एक अदद लड़कों की टोली
सुबह निकली है
सड़कों पर
मोहल्लों में
कूड़ा बीनने
ख़ुद से अपनी ख़ुशियाँ छीनने,
बस्ता भर बचपन
पेट में डालने,
औरतें गईं हैं संभ्रांत घरों में बच्चे पालने,