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*विचारों की चादर*

बुना मैंने फिर से आज
अपने विचारों की एक चादर
अतीत के रुई की मलमल से
मन के धागों को खींच खींचकर
स्वप्न में देखे हुए कशीदे उभरते रहे
जीवन्त भावनाओं की बिसात पर
सरकता हुआ हर एक धागा
फँसता रहा उलझनों क
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