वीर सुपूत's image
403K

वीर सुपूत

वक्यितव उनका व्यक्त होता मुख से उनके आग बन,
ये सोच दुश्मन न लड़े,  रह जाए कहीं न राख बन,
न सर हुआ ऊंचा कभी, जो देश को हानि करे,
रक्षा प्रमुख ऐसा जहां, वहां कौन ही आगे बढ़े,

विशिष्ट अति विशिष्ट क्या, हर ओहदा उनके पास था,
डंका था युद्ध में बोलता, यश ही उनका ग्रास था,
थे वीरता की मूर्ति, शोर्य उनके साथ था,
मात्र वो इंसान थे, जिसने बदला इतिहास था,

शांतिदूत कई देशों के, कई वार्ता के भाग थे,
तीनों बलो में उच्च वो, धरती का सौभाग्य थे,
Read More! Earn More! Learn More!