स्निघता's image
स्निघता की कोमल लहरें क्या उठती है तेरे मन में,
अकसर ये सबसे कहती हूं भूल करो इस यौवन में,
जो भटका न वो क्या जाने दीदार ए आलम दिलबर का,
जादुई सा सब लगता है एक कसक उठे है तन मन में

स्पर्श से उनके रोम रोम अंगड़ाई लेने लगता है,
आलिंगन में उनकी धड़कन का राग सुनाई देता है,
दिल करता है समय कहीं दुबक के पीछे हट जाए,
कुछ अनजाने रस्तों पर हम चलते हुए भटक जाएं

नजरे लगती है बाण हमें जो दिल पर सीधा वार करे,
हर पल हर क्षण ये चाहे बस उनका ही दीदार करे,
क्य
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