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प्रेम का कैदी

ये मन आज भी तेरे प्रेम का कैदी है,
हां बरसो पहले की बात है वो मनहूस रात,
जब दर्द की चाबी से खूबसूरत रिश्तों का वो ताला खोल,
तूने मुझे हाथ पकड़ विदा कर दिया था,
ना लौट आने की हजारों कसमों में बांध कर,
भावनाओ की गठरी को दिल के समुंदर में दफन कर दिया था,

किंतु,मैं चाह कर भी कोने में पड़ा वो भारी मन ना उठा पाई,
वास्तव में मेरा मन तेरे दिल को एक धमनी से जुड़ गया था,
और दोनो में एक से रक्त का संचार होने लगा था,
मैं किसी अनहोनी के चलते उसे अपने संग ना ले जा पाई

संभवत, आज भी मैं वही चुभन, दर्द, कुलबुलाहट, ईर्ष्या उसी
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