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प्रीत का इंसाफ कर दो

भारत युवाओं का देश है। यह कविता अह्वान है भारत के सभी युवाओं से-

 

प्रीत का इंसाफ कर दो। (2)

बढ़ रही मानव की क्रूरता

पर है धरा आंसू बहाती।

देख के करुँणा को इसकी

रौद्र रूप सृष्टि दिखलाती।

 

वो विरंची* है व्यथा में,

सोचता क्या भूल हुई?

इस जगत की वाटिका में

जो मनुज-सुमन खिलाए

त्याग कर अपनी सुगंध को

खो गया है किस भँवर में?

 

उस विधाता की वेदना को

हे यति*! तुम दूर कर दो।

हर तरफ बस प्रेम बरसे

तुम प्रणय का यज्ञ कर दो

प्रीत का इंसाफ कर दो। (2)

 

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