![मंज़िल तुम्हारी है's image](/images/post_og.png)
आगे बढ़ो, बढ़ते रहो रस्ते कई हैं मंज़िल वही है बस चलते रहो । आये जो दोराहे कभी, गुमराह ना होना, घबराना नहीं बस चलते जाना ... अपनी राह पर, अपने मुक़ाम पर हर पल आगे बढ़ते जाना । आये जो पहाड़ कोई, रास्ता ना बदल लेना काट के उस पत्थर को अपनी राह बना लेना । आऐंगी मुश्किलें कई, राह आसान नहीं होगी, दर्द होगा, तक़लीफ होगी, लेकिन, मंज़िल भी वहीं होगी । जो ना मिला उसका गिला
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