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मेरे तुम्हारे रास्ते

मेरे तुम्हारे रास्ते,

कितनी दफे टकराने के बाद,

मीलों तक संग जाने के बाद,

दो से एक हुए थे,


उस रस्ते को हमने 

कितनी ही बातों की ईंटे,

वादों का सीमेंट लगा के बनाया था।

कितनी हँसी के दिन देखें थे हमने,

और शाम ढली तो रातों की नींद का,

लैंप पोस्ट लगाया था।

कभी समय की फ़ास्ट लेन पे,

तो कभी फुटपाथ पर धीरे-धीरे,

चले थे हम


पूरी की कितनी अँधेरी गलियों को,

उम्मीद से रोशन किया था हमने 

और भरोसे के चौराहे पे सीधा चलके।

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