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मेरी कलम से

   ,, स्वाभिमान

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तू खुद को ना यूँ दुर्बल कर।

सबसे तू खुद को प्रबल कर।

अभिमान को स्वाभिमान बना,

स्वाभिमान तो तू खुलकर कर।

ये सोच शत्रु तेरे भीतर ही खड़ा है,

उसका सामना तेरे स्वाभिमान से पड़ा है,

खुद ना तू निर्बल कर।

आत्मविश्वास से ही उसको निर्बल कर।

दुःख के विशालकाय पहाड़ पर ,

विश्वास की तू कड़ी बना,

भिन्न -भिन्न करके उसकी सीढ़ी बना,

अपनी जीत को तू प्रज्वल कर।

ना कर खुद को विचलित इतना,

खुद को तू थोड़ा सृजल कर।

कोमलता के रहे अस्त्र तेरे।

वाणी को तू अपनी मृ

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