
यूं हुईं वस्ल की उम्मीद फिर आज कम धीरे धीरे,
जैसे गुलाब की पंखुड़ियां मुरझा के बिखरती है धीरे धीरे।
हुआ था अपना सिलसिला शुरू एक गुलाब से,
फिर सुलग रहा है आज एक गुलाब धीरे धीरे।
कांटों से बचा के दामन लाया था तेरे लिए,
Read More! Earn More! Learn More!