सूंघते रहने की कला बड़ी पुरानी है,
कोई इत्र सूंघता है तो कोई आब,
सरकारें पत्रकारों के whatsapp सूंघती है,
और नेता सूंघते हैं जन सैलाब।
जब कोई लोक प्रसिद्धि सूंघ रहा हो,
सच्चाई का बेवक्त निकल जाना भी हो जाता है खराब।
प्रजातंत्र में कुछ लोग सब कुछ बोल सकते हैं,
और बाकी आम जनता होती है जनाब।
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