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लिए आरजू सनम बैठे

उड़ते थे जो आसमान में,
आज यहां आ कर थम बैठे।
खिला है जो एक फूल चमन में,
लिए कितने आरजू हम सनम बैठे ।

रास्ता भी वही मंजिल भी वही,
ये हम लगा कौन सी लगन बैठे।
अब बचा ही क्या और समझने को,
जब जला
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