
तारों की भीड़ में अकेला चाँद कब तक रहता,
वो भी तो गुम हो गया एक तारा बनकर।
हज़ारों रौशनी में डूबे शहर की गलियाँ भी,
मेरी तन्हाई चमकी बस एक किनारा बनकर।
नदी भी सागर से मिलते ही खो जाती है,
मैं भी घुल
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तारों की भीड़ में अकेला चाँद कब तक रहता,
वो भी तो गुम हो गया एक तारा बनकर।
हज़ारों रौशनी में डूबे शहर की गलियाँ भी,
मेरी तन्हाई चमकी बस एक किनारा बनकर।
नदी भी सागर से मिलते ही खो जाती है,
मैं भी घुल