बात वही पुराने उन दिनों की है जो अक्सर आप सबने मेरी धारावाहिक कहानी मिस शरारती में पढ़ा होगा.
मेरी बुआ जी का बेटा एक दिन खाने पर अड़ गया कि उसे पीली दाल खानी है. अरहर की दाल उसके लिए पीली दाल थी.. हर दिन उसे वही खाने को चाहिए होती थी.
मेरी माता जी, मैं और बुआजी के चाचा की फॅमिली उस दिन दोपहर के खाने पर बुआजी के यहाँ मौजूद थे.
वहाँ ये तमाशा भी साथ में लगा हुआ था. बुआजी ने मोहल्ले भर में पता करवा लिया कि शायद किसी के यहाँ पीली दाल बनी हो तो अपने शहजादे की ज़िद पूरी कर दें मगर इत्तेफ़ाक उस दिन किसी के यहाँ पीली दाल नहीं बनी थी.
काफ़ी देर खुशामद करने के बाद बुआजी उससे नाराज होकर मेहमानों में मसरूफ हो गयीं.
मुझे और बुआजी की बेटी को बुआजी के रूठे पड़े शहजादे को देखकर बहुत हँसी आ रही थी लेकिन मेहमानों के सामने शहजादे पर हँसने से बुआजी नाराज हो सकती थी तो हम दोनों अपनी हँसी अपनी खाने की प्लेट में उतार रहे थे.
कुछ देर ही गुज़री थी कि पलंग पर औंधे पड़े शहजादे अचानक से हरकत में आ गये, पलंग पर तेजी के साथ पालथी मारकर बैठ गये और बो