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बिना कहे सब कुछ कह दिया

सभी की ज़िंदगी में कुछ इस तरह की मखलूक वुजूद में  ज़रूर होती है इसीलिए आज इसी विषय पर कलम ने कुछ लिखा है. मैं कभी इस तरह के विषय लिखती नहीं हूँ लेकिन इस वीक एक घटना ने मुझे ये लिखने पर मजबूर कर दिया.

हुआ ये था कि हम एक जगह डिनर पर गए हुए थे.. वहाँ मेजबान के कुछ और रिश्तेदारों को भी आना था. हम उनसे पहले पहुँच गये थे. अब जब वो लोग घर में दाखिल हुए तो मेजबान से बोले..

"घर तो बड़ा शानदार है आपका, क्या ऊपर भी कमरे हैं? ज़रा अपना घर घुमाएं... यहाँ क्या है, वहाँ क्या है, किराया कितना है, क्या ऐसा घर और भी खाली है, घर की साज सजावट बड़ी शानदार है, क्या ये आपका शौक़ है या आपकी बीवी का... कितने साल से आप यहाँ रह रहे हैं..
फ़िर उनकी नज़र मेजबान के नौकर पर पड़ गयी.. फिर सवाल दागे जाने लगे.
क्या नौकर रोज आता है? क्या यहीं रहता है? क्या ये आपका कुक है? "

मेरा तो उनके सवाल सुनकर इस दावत से ही मन भर चुका था.. कितनी बेबाकी से तमीज के दायरों की धज्जियाँ उड़ायी जा रहीं थीं.
खाना लग चुका था.. उनकी बीवी ने खाना कमाल बनाया हुआ था अब उसको भी निशाने पर ले लिया गया था..

"आप तो बाहर खाना खाने जाते ही नहीं होंगे जब इतना शानदार खाना घर में खाते होंगे.."

मेरा हैरत से बुरा हाल था कि इनकी अकल घास चरने गयी है क्या दावतों के खाने रोज रोज घर में कौन खाता होगा.

"क्या प्रज

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