रक्खे कोई's image

सामने की गुफ़्तगू का सिलसिला रक्खे कोई

ख़्वाब में कब तक किसी से राब्ता रक्खे कोई


अपनी-अपनी चाहतों का दायरा रक्खे कोई

चाहने वालों से कितना फ़ासला रक्खे कोई


वस्ल की शामें नहीं और उम्र से लंबी फ़िराक़

टूटना लाज़िम है कब तक हौसला रक्खे कोई


जो भी शिकवे हैं सभी मिट जाएं अच्छा है यही

क्यों किसी से उम्र भर को गिला रक्खे कोई


हम बना लेते हैं अपना घर शज़र को काटकर

अपनी छत पर ही सही पर घोंसला रक्खे कोई


सर्द रातों में कहीं हो सर छुपाने की जगह

या मुसाफ़िर साथ अपने शब-कदा रक्खे कोई


हम अकेले

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