ज़िंदगी हादसों से लत-पत थी
पर मेरे साथ मेरी हिम्मत थी
जिन आंखों में ख़्वाब होते थे
उन आंखों में आज वहशत थी
ज़िंदगी रूठी आज फिर मुझ से
आज फिर ख़ुदखुशी की नौबत थी
इस तरह कब तलक भटकता मैं
रूह को ज़िस्म की जरूरत थी
अलग बाजार था रईसों का
जहां हर शय की एक क़ीमत थी
कौन दुःख में किसे दिलासा दे
किसको दुनियाँ-जहाँ से फुर्सत थी
एक ऐसा मोहल्ला था जिसमें
ब
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